I Journey of criminal, politics to the end
I Journey of criminal, politics to the end

अतीक अहमद: अपराध, सत्ता और अंत का सफर
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) से निकलकर अपराध और राजनीति की दुनिया में अपना साम्राज्य खड़ा करने वाला अतीक अहमद एक ऐसा नाम था, जिसने दशकों तक खौफ और ताकत का खेल खेला। हत्या, रंगदारी, फिरौती और जमीन हड़पने जैसे संगीन मामलों में उसका नाम जुड़ा रहा। लेकिन जितनी तेजी से उसका अपराधी जीवन परवान चढ़ा, उतनी ही निर्ममता से उसका अंत भी हुआ।
### शुरुआत: अपराध की दुनिया में पहला कदम
अतीक अहमद का जन्म 1962 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उसका परिवार साधारण था, लेकिन वह छोटी उम्र से ही अपराधों की ओर आकर्षित था। गरीबी और बेरोजगारी ने उसे अपराध की दुनिया में जाने के लिए मजबूर किया या यह उसकी अपनी महत्वाकांक्षा थी—यह कहना मुश्किल है, लेकिन 1979 में, जब वह महज 17 साल का था, उसने पहला आपराधिक मामला दर्ज करवा लिया। यह मामला हत्या से जुड़ा था, जिसने उसे अपराध जगत में पहचान दिलाई।
धीरे-धीरे वह इलाहाबाद में गैंगस्टर के रूप में उभरने लगा। जमीन हड़पना, जबरन वसूली, अपहरण और हत्या जैसे अपराध उसके लिए आम बात हो गए। स्थानीय स्तर पर उसका आतंक इतना बढ़ गया कि लोग उसके खिलाफ बोलने से भी डरते थे।
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### राजनीति में एंट्री: सत्ता और अपराध का गठजोड़
1980 और 90 के दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीति अपराधियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन चुकी थी। बाहुबलियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा था और अतीक अहमद ने भी इस मौके का फायदा उठाया। उसने 1989 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक बन गया।
यह उसकी पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी। इसके बाद उसने समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थामा और लगातार पाँच बार इस सीट से विधायक बना। राजनीति में आने के बाद भी उसका आपराधिक साम्राज्य चलता रहा। बल्कि, अब उसे राजनीतिक सुरक्षा भी मिल गई थी, जिससे पुलिस और प्रशासन उसके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई करने से कतराते थे।
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### राजू पाल हत्याकांड: सत्ता का क्रूर चेहरा
2004 में, जब अतीक अहमद सांसद बन गया, तो उसने अपनी विधानसभा सीट छोड़ दी। इस सीट पर हुए उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राजू पाल ने उसके करीबी उम्मीदवार को हरा दिया। यह हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई।
25 जनवरी 2005 को, दिनदहाड़े राजू पाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ का नाम सामने आया। यह घटना उत्तर प्रदेश की राजनीति और अपराध जगत के गठजोड़ का बड़ा उदाहरण बनी। लेकिन अतीक की पहुंच और ताकत इतनी थी कि वह लंबे समय तक बचता रहा।
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### गिरफ्तारी और जेल का सफर
2007 में, जब मायावती की सरकार बनी, तब अतीक अहमद पर शिकंजा कसने लगा। उसे गिरफ्तार कर लिया गया और कई वर्षों तक जेल में रखा गया। लेकिन 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार बनी, तो उसे फिर से राहत मिल गई।
हालांकि, 2017 में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार आई, तो अतीक पर कार्रवाई तेज हो गई। उसके खिलाफ कई पुराने मामलों को फिर से खोला गया और उसकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलने लगे। 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उसे गुजरात की साबरमती जेल भेज दिया गया।
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### अंत: गोली मारकर हत्या
15 अप्रैल 2023 को, जब अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को प्रयागराज में मेडिकल जांच के लिए ले जाया जा रहा था, तभी तीन युवकों ने पुलिस सुरक्षा के बीच उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। कैमरों के सामने ही दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई। हत्यारों ने नारा लगाया— “जय श्री राम”।
इस हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। यह घटना उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े कर गई।
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### अपराध और राजनीति का सबक
अतीक अहमद का जीवन यह दिखाता है कि अपराध और राजनीति का गठजोड़ कितना घातक हो सकता है। उसने दशकों तक खौफ का साम्राज्य चलाया, लेकिन अंत में न कानून उसे बचा सका, न उसकी सत्ता। उसकी मौत अपराध की दुनिया के लिए एक बड़ा संदेश बनकर रह गई।