बिहार के बाहुबली आनंद मोहन: राजनीति, अपराध और विवादों की पूरी कहानी
आनंद मोहन**—बिहार की राजनीति का वह नाम, जो कभी गरीब और पिछड़े वर्ग के मसीहा के तौर पर जाना गया, तो कभी एक **बाहुबली नेता

2.### बिहार के बाहुबली आनंद मोहन: राजनीति, अपराध और विवादों की पूरी कहानी
आनंद मोहन**—बिहार की राजनीति का वह नाम, जो कभी गरीब और पिछड़े वर्ग के मसीहा के तौर पर जाना गया, तो कभी एक **बाहुबली नेता के रूप में।
एक ऐसा नेता, जो कभी बिहार के सियासी मंच पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए था, लेकिन फिर एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काटनी पड़ी।
आनंद मोहन की कहानी एक साधारण इंसान से लेकर बाहुबली नेता बनने, फिर जेल जाने और अब दोबारा राजनीतिक जमीन तैयार करने तक के सफर को दर्शाती है।
यह कहानी बिहार की राजनीति में बाहुबल और सत्ता के गठजोड़ का प्रतीक है, जिसमें सत्ता, संघर्ष, अपराध, विवाद और पुनरुत्थान की गूंज सुनाई देती है।
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## आनंद मोहन का शुरुआती जीवन: छात्र राजनीति से बाहुबली बनने तक
आनंद मोहन का जन्म 1954 में बिहार के सहरसा जिले में हुआ था।
उनका परिवार सामान्य पृष्ठभूमि से आता था, लेकिन बचपन से ही उनमें नेतृत्व क्षमता दिखने लगी थी।
उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और अपनी कड़क छवि के कारण जल्द ही स्थानीय राजनीति में मजबूत पकड़ बना ली।
1980 और 90 के दशक में, बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों और बाहुबल पर आधारित थी।
इसी माहौल में आनंद मोहन ने अपनी अलग पहचान बनाई और राजनीति में तेजी से उभरने लगे।
1990 में उन्होंने बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) की स्थापना की।
यह पार्टी समाज के दबे-कुचले और पिछड़े वर्ग के उत्थान की बात करती थी, लेकिन इसके साथ ही आनंद मोहन की बाहुबली छवि भी लगातार मजबूत होती गई।
सहरसा और कोसी क्षेत्र में उनका इतना प्रभाव था कि वहां उनके नाम का डर और सम्मान दोनों एक साथ महसूस किए जाते थे।
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## लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन अपराध के आरोपों से घिरे रहे
आनंद मोहन ने सहरसा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और सांसद बने।
लेकिन, राजनीति में रहते हुए भी उनका नाम कई आपराधिक मामलों से जुड़ा रहा।
👉 1994 में उनकी जिंदगी ने एक बड़ा मोड़ लिया, जब उन पर आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या का आरोप लगा।
👉 कृष्णैया उस समय बिहार के गोपालगंज के जिलाधिकारी थे और सरकारी काम से पटना जा रहे थे।
👉 आरोप लगा कि आनंद मोहन ने अपनी भीड़ को भड़काया और कृष्णैया की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।
👉 इस मामले में आनंद मोहन को पहले फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में इसे उम्रकैद में बदल दिया गया।
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## आनंद मोहन की जेल यात्रा: अपराधी या राजनीतिक साजिश का शिकार?
👉 2007 में आनंद मोहन को पटना हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई।
👉 15 साल तक जेल में रहे, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी।
👉 जेल में रहते हुए उन्होंने कई किताबें भी लिखीं, जिसमें उनकी चर्चित पुस्तक ‘कर्फ्यू में लोकतंत्र’ शामिल है।
उनके समर्थकों का कहना था कि आनंद मोहन को राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया, जबकि विरोधियों का कहना था कि उन्होंने भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया था।
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## रिहाई और बिहार की राजनीति में भूचाल
2023 में बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया, जिसके तहत आनंद मोहन अप्रैल 2023 में जेल से रिहा हो गए।
👉 नीतीश कुमार की सरकार ने उनके अच्छे आचरण के आधार पर उनकी सजा को कम कर दिया।
👉 बीजेपी और विपक्षी दलों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की और कहा कि सरकार बाहुबलियों को बढ़ावा दे रही है।
लेकिन उनके समर्थकों के लिए यह सत्ता में वापसी का संकेत था।
👉 रिहाई के बाद आनंद मोहन ने बिहार में कई बड़ी जनसभाएं कीं और राजनीतिक गतिविधियों को तेज कर दिया।
👉 उन्होंने कहा कि वे अब समाज के लिए काम करना चाहते हैं और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं।
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## परिवार की राजनीति में एंट्री: लवली आनंद और चंद्रशेखर भी मैदान में
आनंद मोहन की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी लवली आनंद ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया।
👉 उन्होंने कई बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा।
👉 अब उनके बेटे चंद्रशेखर आनंद भी राजनीति में उतर चुके हैं और पिता की विरासत को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।
2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में आनंद मोहन और उनका परिवार बड़ा रोल निभा सकता है।
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## क्या बिहार की राजनीति में फिर से बाहुबल का युग आएगा?
आनंद मोहन की वापसी बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकती है।
👉 उनके समर्थकों का मानना है कि अब वे सामाजिक बदलाव लाने के लिए काम करेंगे।
👉 लेकिन विरोधियों का कहना है कि बिहार में फिर से बाहुबल की राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है।
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## क्या आनंद मोहन फिर से चुनाव लड़ेंगे?